बैजनाथ में रावण की अद्वितीय महिमा: राम का नाम लेने से परहेज और रावण की पूजा की परंपरा
दशहरा का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ में यह परंपरा नहीं है। यहां लोग रावण के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं और भगवान राम का नाम सुनते ही नाराज हो जाते हैं। यहां की दादी-नानी बच्चों को रावण की कहानी सुनाती हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि रावण की महिमा यहां अद्वितीय है।
रावण की तपोस्थली
बैजनाथ को रावण की तपोस्थली माना जाता है। मान्यता है कि रावण ने यहां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। जब भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए, तो रावण ने हवन कुंड में अपने नौ शीश चढ़ाए। इस तपस्या के परिणामस्वरूप भगवान शिव ने प्रकट होकर रावण से वर मांगने को कहा।
रावण की इज्जत
यहां रावण को “रावण जी” कहकर संबोधित किया जाता है। यदि कोई गलती से “रावण” कह दे, तो लोग गुस्सा हो जाते हैं। स्थानीय निवासी जय शंकर या जय महाकाल कहते हैं, और रावण की वीरता की कहानियों को सुनाते हैं। मंदिर के पुजारी संजय शर्मा का कहना है कि रावण को न तो कोई मूर्ति है और न ही पूजा होती है, लेकिन उनका दर्जा बहुत बड़ा है।
क्यों नहीं मनाया जाता दशहरा?
पंडित संजय शर्मा के अनुसार, बैजनाथ में दशहरा मनाने पर लोगों की अकाल मृत्यु होती रही है। इसलिए इस परंपरा को छोड़ दिया गया। यहां सोने की दुकानों का भी कोई नामोनिशान नहीं है, क्योंकि जो भी सोने की दुकान खोलता है, उसका सोना काला पड़ जाता है।
रावण का मंदिर से संबंध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने भगवान शिव के लिए तप किया और उन्हें लंका में स्थापित करने का प्रस्ताव दिया। रावण ने शिवलिंग को लेकर एक ग्वाले को सौंप दिया था, लेकिन जब वह लौटकर आया, तो शिवलिंग को उठाने में असफल रहा। इस घटना के कारण शिवलिंग आज भी जमीन में धंसा हुआ है।